ध्यान न तो व्यक्तिगत है और न ही सामाजिक
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विचार का खिलना ही विचार का अंत है
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वह मन जिसने अपना घर व्यवस्थित कर लिया है वह शांत, शांत मन है
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आशीर्वाद होता है एक ऐसा मन जो चुप है पर बेहद सतर्क है सावधान है
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हमें खुद से पूछना होगा कि क्या हम एक सतही आजादी चाहते हैं या वजूद की तह तक आजाद होना चाहते हैं
याददाश्त के जाल से मुक्त कर्म ही है जो हर पल क्रांतिकारी है
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सही विचलन सही सोच स्वयं को जानने से शुरू होती है, न कि धारणाओं और तथ्यों के ज्ञान से
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अपने विचार की हर हरकत को जानना अपने को जानना है
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जब स्वतंत्रता है तब जिम्मेदारी का अर्थ काफी अलग है
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सिर्फ आजादी में ही सत्य का उद्घाटन हो सकता है
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